अव्यक्तोऽयमचिन्त्योऽयमविकार्योऽयमुच्यते ।
तस्मादेवं विदित्वैनं नानुशोचितुमर्हसि॥ २५ ॥
तस्मादेवं विदित्वैनं नानुशोचितुमर्हसि॥ २५ ॥
यह आत्मा अव्यक्त, अकल्पनीय तथा अपरिवर्तनीय कहा जाता है। यह जानकर तुम्हें शरीर के लिए शोक नही करना चाहिए।
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खुली आँखों से नही दिखता
सूक्ष्मता कल्पना से भी परे है।
शरीर की तरह परिवर्तित न हो
न ही इसे दुःख-व्याधि धरे है।।
आत्मा के विषय में ये सारी बातें
हमें हमारे अमल शास्त्र बताते हैं।
जो समझ लेते हैं शास्त्रों की बातें
वे शरीर हेतु शोक नही मनाते हैं।।
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