Tuesday, October 18, 2016

अध्याय-2, श्लोक-71

विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्चरति निःस्पृहः ।
निर्ममो निरहंकारः स शान्तिमधिगच्छति ॥ ७१ ॥ 
जिस व्यक्ति ने इन्द्रिय तृप्ति की समस्त इच्छाओं का परित्याग कर दिया है, जो इच्छाओं से रहित रहता है और जिसने सारी ममता त्याग दी है तथा अहंकार से रहित है, वही वास्तविक शांति को प्राप्त कर सकता है।
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इंद्रियों को तृप्त करने की इच्छा 
जिसने सर्वथा परित्याग दिया है।
अपने चंचल मन को भी जिसने 
समस्त इच्छाओं से मुक्त किया है।।

ऐसा व्यक्ति ही मन को जीत कर 
मोह,अहंकार से रहित हो जाता है।
ऐसी दिव्य अवस्था में पहुँचकर ही 
व्यक्ति शांति का परम सुख पाता है।।

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