Thursday, November 3, 2016

अध्याय-4, श्लोक-10

वीतरागभय क्रोधा मन्मया मामुपाश्रिताः ।
बहवो ज्ञानतपसा पूता मद्भावमागताः ॥ १० ॥
आसक्ति, भय और क्रोध से मुक्त होकर, मुझमें पूर्णतया तन्मय होकर और मेरी शरण में आकर बहुत से व्यक्ति भूत काल में मेरे ज्ञान से पवित्र हो चुके हैं। इस प्रकार से उन सबों ने मेरे प्रति दिव्यप्रेम को प्राप्त किया है।
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मोह, भय और क्रोध का त्याग 
जब पूरी तरह कोई कर देता है।
मुझमें पूर्ण रूप से तन्मय होके
मेरी अनन्य शरणागति लेता है।।

ऐसे कितने मनुष्यों को अब तक  
मेरे दिव्य ज्ञान ने पवित्र किया है।
तपस्या के द्वारा उन लोगों ने मेरे 
दिव्य प्रेम को भी प्राप्त किया है।।

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