Thursday, November 3, 2016

अध्याय-4, श्लोक-11

ये यथा माँ प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्‌ ।
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः ॥ ११ ॥
जिस भाव से सारे लोग मेरी शरण ग्रहण करते हैं, उसी के अनुरूप मैं उन्हें फल देता हूँ। हे पार्थ! प्रत्येक व्यक्ति सभी प्रकार से मेरे पथ का अनुगमन करता है।
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जिस रूप में मुझको जिसने चाहा 
उसी रूप में मैं भी उससे मिला हूँ।
जिस भाव से शरण ली जिसने उसे 
उसी भाव से मैं स्वीकार किया हूँ।।

जैसी इच्छा वैसा ही फल उसका   
जिसने जो चाहा उसे वही मिला है।
प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सबने सदा   
मेरे पथ का ही  अनुगमन किया है।।

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