परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥ ८ ॥
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥ ८ ॥
भक्तों कि उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूँ।
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भक्तों को अपने मान देने
दुष्टों के विनाश के लिए।
अटल श्रद्धा रखनेवाले
भक्तों के आस के लिए।
मैं प्रकट होता हूँ हर युग में
धरती का बोझ हरता हूँ।
अधर्म का नाश कर धर्म की
यहाँ पुनः स्थापना करता हूँ।।
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