Thursday, November 3, 2016

अध्याय-4, श्लोक-7

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्‌ ॥ ७ ॥
हे भरतवंशी! जब भी और जहाँ भी भी धर्म का पतन होता है और अधर्म की प्रधानता होने लगती है, तब तब मैं अवतार लेता हूँ।
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जब जब होती धर्म की हानि
होने लगे सज्जनों को परेशानी।
धर्म धरा से सिमटने लगे और
अधर्मी करे जब अपनी मनमानी।।

तब तब हे भारत! अपने धाम से
इस धरा पर मैं अवतरित होता।
धर्म की हानि व अधर्म की वृद्धि
ऐसा अधिक समय नहीं  रहता।।

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