Friday, November 4, 2016

अध्याय-4, श्लोक-12

काङ्‍क्षन्तः कर्मणां सिद्धिं यजन्त इह देवताः ।
क्षिप्रं हि मानुषे लोके सिद्धिर्भवति कर्मजा ॥ १२ ॥
इस संसार में मनुष्य सकाम कर्मों में सिद्धि चाहते हैं, फलस्वरूप वे देवताओं की पूजा करते हैं। निस्सन्देह इस संसार में मनुष्यों को सकाम कर्म का फल शीघ्र प्राप्त होता है।
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फल की इच्छा से ही संसार में
सारे मनुष्य अपना कर्म करते हैं।
इच्छित फल मिल जाए उन्हें
इसीलिए देवताओं को पूजते हैं।।

जैसी अभिलाषा होती है उसी
अनुसार इष्टदेव का चयन होता है।
सकाम कर्म का फल संसार में
निश्चित रूप से शीघ्र मिलता है।।

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