Friday, November 4, 2016

अध्याय-4, श्लोक-13

चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः ।
तस्य कर्तारमपि मां विद्धयकर्तारमव्ययम्‌ ॥ १३ ॥
प्रकृति के तीनों गुणों और उनसे संबद्ध कर्म के अनुसार मेरे द्वारा मानव समाज के चार विभाग रचे गये। यद्यपि मैं इस व्यवस्था का स्रष्टा हूँ, किंतु तुम यह जान लो कि मैं इतने पर भी अव्यय अकर्ता हूँ।
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मैंने ही रचे हैं मानव समाज के 
गुणों पर आधारित चार प्रकार।
कौन आए किस वर्ग में इसका 
प्रकृति के तीनों गुण हैं आधार।।

इसप्रकार इस समाज की सृष्टि 
संचालन पालन मैं ही करता हूँ।
सारे जगत को संभालकर भी मैं 
सदा ही रहता अव्यय अकर्ता हूँ।।

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