Friday, November 4, 2016

अध्याय-4, श्लोक-14

न मां कर्माणि लिम्पन्ति न मे कर्मफले स्पृहा ।
इति मां योऽभिजानाति कर्मभिर्न स बध्यते ॥ १४ ॥
मुझ पर किसी कर्म का प्रभाव नहीं पड़ता, न ही मैं कर्मफल की कामना करता हूँ। जो मेरे संबंध में इस सत्य को जानता है, वह भी कर्मों के फल के पाश में नहीं बँधता।
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किसी भी कर्म के फल से मुझे 
कभी भी कोई मोह नही रहता।
जब कोई आसक्ति ही नही फिर 
कर्म बंधन में भी नहीं मैं बँधता।।

इसप्रकार जो मनुष्य मेरे विषय में 
इस सत्य को भलीभाँति जान लेता।
वह भी हो जाता है बंधन से मुक्त
कर्म पाश उसे भी बाँध नही पाता।।

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