Saturday, November 5, 2016

अध्याय-4, श्लोक-16

किं कर्म किमकर्मेति कवयोऽप्यत्र मोहिताः ।
तत्ते कर्म प्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात्‌॥ १६॥
कर्म क्या है और अकर्म क्या है, इसे निश्चित करने में बुद्धिमान व्यक्ति भी मोहग्रस्त हो जाते हैं। अतएव मैं तुमको बताऊँगा कि कर्म क्या है, जिसे जानकर तुम सारे अशुभ से मुक्त हो जाओगे।
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क्या होती कर्म की परिभाषा
और क्या अकर्म कहलाता है।
बड़े-बड़े बुद्धिमान मनुष्यों को 
यह प्रश्न मोहग्रस्त कर जाता है।।

इसलिए कर्म क्या होता है ये 
आज तुम मुझसे जान जाओगे ।
जिसे जाना लेने के बाद तुम 
हर अशुभ से मुक्त हो पाओगे।।

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