कर्मण्य कर्म यः पश्येदकर्मणि च कर्म यः ।
स बुद्धिमान्मनुष्येषु स युक्तः कृत्स्नकर्मकृत् ॥ १८ ॥
जो मनुष्य कर्म में अकर्म और अकर्म में कर्म देखता है, वह सभी मनुष्यों में बुद्धिमान है और सब प्रकार के कर्मों में प्रवृत्त रहकर भी दिव्य स्थिति में रहता है।
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बुद्धिमान है वह मनुष्य जो
कर्म में अकर्म देख पाता है।
अकर्म में भी कर्म देखते हुए
जो सारे कर्म किए जाता है।।
ऐसा मनुष्य ही वास्तव में
सारे मनुष्यों में बुद्धिमान है।
सारे कार्यों को करते हुए भी
वह मुक्त पुरुष के समान है।।
स बुद्धिमान्मनुष्येषु स युक्तः कृत्स्नकर्मकृत् ॥ १८ ॥
जो मनुष्य कर्म में अकर्म और अकर्म में कर्म देखता है, वह सभी मनुष्यों में बुद्धिमान है और सब प्रकार के कर्मों में प्रवृत्त रहकर भी दिव्य स्थिति में रहता है।
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बुद्धिमान है वह मनुष्य जो
कर्म में अकर्म देख पाता है।
अकर्म में भी कर्म देखते हुए
जो सारे कर्म किए जाता है।।
ऐसा मनुष्य ही वास्तव में
सारे मनुष्यों में बुद्धिमान है।
सारे कार्यों को करते हुए भी
वह मुक्त पुरुष के समान है।।
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