Wednesday, November 2, 2016

अध्याय-4, श्लोक-5

श्रीभगवानुवाच
बहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन ।
तान्यहं वेद सर्वाणि न त्वं वेत्थ परन्तप ॥ ५ ॥
श्रीभगवान ने कहा-तुम्हारे तथा मेरे अनेकानेक जन्म हो चुके हैं। मुझे तो उन सबका स्मरण है, किंतु हे परंतप! तुम्हें उनका स्मरण नही रह सकता।
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श्रीभगवान ने कहा अर्जुन से कि 
यह जन्म प्रथम जन्म नहीं हमारा।
इससे पहले भी कितनी ही  बार 
हो चुका जन्म मेरा और तुम्हारा।।

मुझे हर जन्म का स्मरण है रहता 
मेरी दृष्टि से कुछ भी नही छुपता।
हे परंतप! तुम्हारे लिए यह नया है 
क्योंकि तुम्हें सब याद नही रहता।।

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