Wednesday, November 2, 2016

अध्याय-4, श्लोक-6

अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोऽपि सन्‌ ।
प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय सम्भवाम्यात्ममायया ॥ ६ ॥
यद्यपि मैं अजन्मा तथा अविनाशी हूँ और मैं समस्त जीवों का स्वामी हूँ, तो भी प्रत्येक युग में में अपने आदि दिव्य रूप में प्रकट होता हूँ।
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यद्यपि मेरा कभी जन्म नही होता 
न ही कभी मेरा विनाश होता है।
मैं ही समस्त जीवों का स्वामी हूँ 
मुझे कोई नियंत्रित नहीं करता है।।

इस सृष्टि का नियंता हूँ मैं फिर भी 
इसी सृष्टि में ही अवतरित होता हूँ।
हर युग में ही अपने आदि रूप को 
इस धरा धाम पर प्रकट करता हूँ।।

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