अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रियः ।
स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसंकरः ॥ ४० ॥
स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसंकरः ॥ ४० ॥
हे कृष्ण ! जब कुल में अधर्म प्रमुख हो जाता है तो कुल की स्त्रियाँ दूषित हो जाती हैं और स्त्रीत्व के पतन से हे वृष्णिवंशी! अवांछित संतानें उत्पन्न होती हैं।
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जब अधर्म का हो जाए बोलबाला
कुलीन स्त्रियाँ करने लगे मनमानी।
प्रभु!ये चोट संस्कृति सह न पाती
होती इससे पूरी सभ्यता की हानि।।
जैसे स्त्रियाँ कुल की भूषण है होती
वैसे ही दूषण भी उनका आगे जाता।।
सती जहाँ देती समाज को साधु वहीं
बिन सतीत्व कुल घातक ही आता।।
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