Monday, October 3, 2016

अध्याय-1,श्लोक-41

संकरो नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च ।
पतन्ति पितरो ह्येषां लुप्तपिण्डोदकक्रियाः ॥ ४१॥
अवांछित संतानों की वृद्धि से निश्चय ही परिवार के लिए तथा पारिवारिक परंपरा को विनष्ट करनेवालों के लिए नारकीय जीवन उत्पन्न होता है। ऐसे पतित कुलों के पुरखे गिर जाते हैं क्योंकि उन्हें जल तथा पिण्ड दान देने की क्रियाएँ समाप्त हो जाती है।
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जब होते कुल के घातक संतति 
सारी परम्पराएँ मिट-सी जाती हैं।
न धर्म होता, न संस्कार है बचते 
नारकीय दशा उत्पन्न हो जाती है।।

कोई विधिविधान रहता नही घर में 
पितरों को पानी तक नही मिलता।
तारण - सदगति की बात करें क्या 
 पितरों का पद तो और भी गिरता।



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