Monday, October 3, 2016

अध्याय-1,श्लोक-42

दोषैरेतैः कुलघ्नानां वर्णसंकरकारकैः ।
उत्साद्यन्ते जातिधर्माः कुलधर्माश्च शाश्वताः ॥ ४२ ॥
जो लोग कुल परम्परा को विनष्ट करते हैं और इस तरह अवांछित संतानों को जन्म देते हैं उनके दुष्कर्मों से समस्त प्रकार की सामुदायिक योजनाएँ तथा पारिवारिक कल्याण-कार्य विनष्ट हो जाते हैं।
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कुल की परम्परा का नष्ट होना बस 
कुल तक ही सीमित नहीं है होता।
कुलद्रोही अवांछित संतति का पाप 
पूरे मानव समाज को ढ़ोना है होता।

समाज कल्याण की सारी योजनाएँ 
यूँ ही धरी-की-धरी फिर रह जाती हैं।
कल्याण- कार्य सम्पन्न हो नही पाते 
जब अधर्मी,अनुत्तरदायी पीढ़ी आती है।

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