Monday, October 3, 2016

अध्याय-1,श्लोक-43

उत्सन्नकुलधर्माणां मनुष्याणां जनार्दन ।
नरकेऽनियतं वासो भवतीत्यनुशुश्रुम ॥ ४३ ॥
हे प्रजापालक कृष्ण! मैंने गुरु-परम्परा से सुना है कि जो लोग कुल-धर्म का विनाश करते हैं, वे सदैव नरक में वास करते हैं।
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हे प्रजापालक कृष्ण! यह मेरी नही 
हमारे गुरुओं की रही है ऐसी मति।
किसी भी परिस्थिति में हो न पाए 
कुल के धर्म व संस्कारों की क्षति।।

वरना जो बनता है कारण कुल के 
धर्म और संस्कारों के विनाश का।
उसको तो मिलना है निश्चित दंड  
नरक के घोर कष्टमय वास का।।




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