संजय उवाच
एवमुक्त्वार्जुनः सङ्ख्ये रथोपस्थ उपाविशत् ।
विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानसः ॥ ४६ ॥
एवमुक्त्वार्जुनः सङ्ख्ये रथोपस्थ उपाविशत् ।
विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानसः ॥ ४६ ॥
संजय ने कहा-युद्धभूमि में इसप्रकार कह कर अर्जुन ने अपना धनुष तथा बाण एक ओर रख दिया और शोकसंतप्त चित्त से रथ के आसन पर बैठ गया।
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बता रहे हैं धृतराष्ट्र से सब संजय
जो भी रण में है अभी हो रहा।
कैसे युद्धभूमि के मध्य में आकर
अर्जुन ने कृष्ण से क्या-क्या कहा।।
रखे अर्जुन ने धनुष-बाण किनारे
युद्ध न करने के तर्क समाप्त कर।
शोक से विह्वल हृदय था उनका
बैठ गए अब वे रथ के आसन पर।।
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