श्री भगवानुवाच
अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे ।
गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति प ण्डिताः ॥ ११ ॥
अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे ।
गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति प ण्डिताः ॥ ११ ॥
श्री भगवान ने कहा-तुम पांडित्यपूर्ण वचन कहते हुए उनके लिए शोक कर रहे हो जो शोक करने योग्य नहीं हैं। जो विद्वान होते हैं, वे न तो जीवित के लिए, न ही मृत के लिए शोक करते हैं।
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श्रीभगवान ने सम्भाला जैसे गुरु पद
अर्जुन शोक पर ही प्रश्नचिह्न लगाया।
जिनके लिए कर रहे हैं शोक अर्जुन
वे इस योग्य नही प्रभु ने उन्हें बताया।।
पंडितों की तरह वाणी है तुम्हारी पर
विपरीत इसके है तुम्हारा ये आचरण।
विद्वान कभी भी शोक नहीं करते चाहे
व्यक्ति जीवित हो या हो गया हो मरण।।
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