Thursday, October 6, 2016

अध्याय-2, श्लोक-13

देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा ।
तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति ॥ १३ ॥
जिस प्रकार शरीरधारी आत्मा इस (वर्तमान) शरीर में बाल्यावस्था से तरुणावस्था में और फिर वृद्धावस्था में निरंतर अग्रसर होता रहता है, उसी प्रकार मृत्यु होने पर आत्मा दूसरे शरीर में चला जाता है। धीर व्यक्ति ऐसे परिवर्तन से मोह को प्राप्त नही होता।
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प्रतिक्षण शरीर बदलता जीव का 
बालक एकदिन  तरुण हो जाता।
तरुणाइ पर ही ठहरे नही जीवन 
बढ़ते-बढ़ते फिर बुढ़ापा भी आता।

शरीर को धारण करनेवाली आत्मा 
प्रतिपल ही शरीर है बदलती रहती।
बूढ़ा हो जाए जब वर्तमान शरीर तो 
नए शरीर को धारण है यह करती।।

बालपन, तरुणाइ और बुढ़ापा जैसे 
मृत्यु भी परिवर्तन के क्रम में आए।
धीर वही जो मोहित हुए बिना ही 
शरीर का ये परिवर्तन समझ जाए ।।

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