Tuesday, October 4, 2016

अध्याय-2, श्लोक-2

श्रीभगवानुवाच
कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्‌ ।
अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन           ॥ २॥
श्री भगवान ने कहा - हे अर्जुन! तुम्हारे मन में यह कल्मष आया कैसे? यह उस मनुष्य के लिए तनिक भी अनुकूल नही है, जो जीवन के मूल्य को जानता हो। इससे उच्चलोक की नहीं अपितु अपयश की प्राप्ति होती है।
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अर्जुन की मोहभारी सारी बातों को 
श्रीभगवान ने मन का कल्मष बताया।
आयी कैसे कायरता क्षत्रिय हृदय में 
प्रभु ने इस पर ही बड़ा खेद जताया।

जो जाने है मानव जीवन का मूल्य 
उनके लिए ये बातें हैं अनुकूल नही।
इससे न इस लोक में यश है मिलता 
न ही मारने के बाद उच्चलोक कहीं।।

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