Tuesday, October 4, 2016

अध्याय-2, श्लोक-3

क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते ।
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप ॥ ३ ॥
हे पृथापुत्र! इस हीन नपुंसकता को प्राप्त मत होओ। यह तुम्हें शोभा नही देती। हे शत्रुओं के दमनकर्ता! हृदय की क्षुद्र दुर्बलता को त्याग कर युद्ध के लिए खड़े होओ।
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युद्धभूमि में आकर करुणा की बातें 
यह दया नही है, है हीं  नपुंसकता।
हे पार्थ तुम रहे हो शत्रु के संहारक 
उसी क्षात्र बल की है आवश्यकता।।

शोभा नही देती तुम्हें ऐसी कायरता 
त्याग दो हृदय की ये क्षुद्र दुर्बलता।
खड़े होओ अब त्यागकर मोह सारा 
दिखाओ शत्रुओं को अपनी प्रबलता।।

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