न हि प्रपश्यामि ममापनुद्या-
द्यच्छोकमुच्छोषणमिन्द्रियाणाम् ।
अवाप्य भूमावसपत्रमृद्धं-
अवाप्य भूमावसपत्रमृद्धं-
राज्यं सुराणामपि चाधिपत्यम् ॥ ८ ॥
मुझे ऐसा कोई साधन नहीं दिखता जो मेरी इंद्रियों को सुखाने वाले इस शोक को दूर कर सके। स्वर्ग पर देवताओं के आधिपत्य की तरह इस धनधान्य-सम्पन्न सारी पृथ्वी पर निष्कंटक राज्य प्राप्त करके भी मैं इस शोक को दूर नहीं कर पाउँगा।
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ऐसा कोई भी साधन नही दिखता
जो मेरे इस शोक को दूर कर सके।
कैसे मैं प्राप्त करूँ मन की शांति
युद्ध करके या फिर युद्ध न करके ।।
मिल जाय मुझे इंद्र की अमरावती
या इस धरा का निष्कंटक राज्य ।
पर कोई भी दूर नही कर सकता
छाया मुझ पर शोक का साम्राज्य।।
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