रसोऽहमप्सु कौन्तेय प्रभास्मि शशिसूर्ययोः ।
प्रणवः सर्ववेदेषु शब्दः खे पौरुषं नृषु ॥ ८ ॥
प्रणवः सर्ववेदेषु शब्दः खे पौरुषं नृषु ॥ ८ ॥
हे कुंतिपुत्र! मैं जल का स्वाद हूँ, सूर्य तथा चंद्रमा का प्रकाश हूँ, वैदिक मंत्रों में ओंकार हूँ। आकाश में ध्वनि हूँ तथा मनुष्य में सामर्थ्य हूँ।
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हे कुंतिपुत्र! मैं ही हूँ
स्वाद जल का।
मैं ही हूँ ध्वनि
विस्तृत नभ का।।
सूरज और चाँद का
मैं ही हूँ प्रकाश।
मैं ही वो पुरुषार्थ
जो है मनुष्यों के पास।।